जयपुर शहर से लगभग 42 किलोमीटर की दूरी पर यह स्थान माधोगढ़ जयपुर-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग 11 (NH11) पर स्थित है। यहां पर आप सप्ताह के अंत में जाने की योजना बना सकते है आप अपने परिवार के साथ कही जाना चाहते है और आपको ऐतिहासिक स्थानों को देखने का मन कर रहा है तो आप माधोगढ़ जा सकते है ये आपकी उम्मीदों पर खरा उतरेगा।
माधोगढ़ की आप यात्रा करेगे तो आपको यहां पर बहुत घने जंगल देखने को मिलेंगे और यहां पर खेत है जिसमे एक बार यहाँ लड़ाई हुई थी यह युद्ध तुंगा युद्ध के लिए जाना जाता है।
माधोगढ़ में इसके अलावा एक प्राचीन बावरी भी है जो पाँच मंजिल से भी अधिक की है।
अगर आपका धार्मिक स्थल पर यात्रा करने का मन है तो हम आपको सुझाव देगे की आप नई का नाथ शिव मंदिर में यात्रा करने के लिए जाये यहां पर यात्रा करने पर आपको मन की शांति मिलेगी। माधोगढ़ के पास ही यह मंदिर है यह हिन्दुओ का धार्मिक स्थल में से एक है।
हर साल एक मेला नई का नाथ शिव मंदिर के पास आयोजित किया जाता है। नई का नाथ शिव मंदिर पर हजारो की सख्या में श्रद्धालु आते है।
माधोगढ़ के पास केवल धार्मिक स्थल ही नही है यहां पर एक प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र भी है और एक योग और ध्यान केंद्र भी है जहां पर भी लोगो का आना जाना लगा ही रहता है ज्यादातर लोग इस जगह का दौरा करने आते है वे यहां पर अपना प्राकृतिक चिकित्सा उपचार करवाने के लिए आते है
माधोगढ़ के कुछ भागो को होटल में परिवर्तित कर दिया गया है। और इस जगह के पूर्व मालिक ठाकुर शिव प्रताप सिंह के अधीन कर दिया गया है। इस होटल में दर्शको की जरूरतों को बहुत अच्छी तरह से पूरा किया जाता है यहां दर्शको की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अच्छी तरह से सुसज्जित है।
400 साल पहले माधोगढ़ महाराज माधो सिंह के द्वारा स्थापित किया गया था। महाराजा रामसिंह द्वितीय ने माधोगढ़ के परिवार में शादी की थी। तो उनकी शादी में ठाकुर प्रताप सिंह ने एक यादगार वसीहत तैयार करवाई और यह महल उनको शादी में भेट स्वरूप दिया गया था।
माधोगढ़ और तुंगा युद्ध को ऐतिहासिक युद्ध के रूप में स्थान दिया गया है इस युद्ध की वजह से इस जगह की गणना ऐतिहासिक स्थानों में की गई है। मराठों से जयपुर के महाराजा सवाई प्रताप सिंह और महाड जी सिंधिया के बीच अंतिम लड़ाईमाधोगढ़ और तुंगा में 28 जुलाई, 1787 में हुई थी। यह युद्ध सुबह के आसपास 9:00 बजे शुरू हुआ था और एक दिन के बाद सूर्यास्त एक चला और एक घण्टे के बाद इसका निष्कर्ष निकल गया था।
मराठों की सेना ने इस युद्ध का मार्गदर्शन बेनेट डी बुआ के नेत्रेत्व में किया था इन्होंने सेना का नियंत्रण किया था।
यह सिंधिया की सेना के सबसे भरोसेमंद आदमी थे। उनका एक रिकार्ड था की वो लड़ाई में कभी नही हारे थे।
तुंगा-माधोगढ़ के युद्ध में मराठों के ऊपर जयपुर के महाराजा सवाई प्रताप सिंह की जीत अतीत की एक उल्लेखनीय जीत होना कहा जाता है। यह कहा जाता है कि आज भी तुंगा-माधोगढ़ के क्षेत्रों में जंग लगे हथियारों को देखा जा सकता है और वहां पर आज भी मृतक सैनिकों की (हड्डियों) में देखा जा सकता है।