राजस्थान की राजधानी जयपुर में उत्तर—पश्चिम में अरावली की पहाड़ी पर स्थित पीले रंग का नारहगढ़ किला गुलाबी नगर की खूबसूरती में चार चांद लगाता है। नाहरगढ़ का किला शहर के लगभग हर कोने से नजर आता हैं। रात में यहां जब लाइटिंग होती है तो इसकी खूबसूरती और बढ़ जाती है। बारिश के दौरान यहां से जयपुर शहर का नजारा किसी हिल स्टेशन सरीखा होता है। खिड़कियों से बदलों की आवाजाही एक सुखद अहसास कराती है। यही वजह है कि जब शहर में बारिश होती है तो यहां लोग पिकनिक मनाने उमड़ पड़ते है। यह किला जितना खूबसूरत है उतना ही रहस्यमय।
नाहरगढ़ किले को जयपुर के राजा सवाई जय सिंह द्वारा बनाया गया था। इस किले का निर्माण कार्य 1734 में पूरा किया गया, हालांकि बाद में 1880 में महाराजा सवाई सिंह माधो द्वारा किले की विशाल दीवारों और बुर्जो का पुननिर्माण भी करवाया गया था। यह किला, अरावली पर्वतों की श्रृंखला में बना हुआ है जो भारतीय और यूरोपीय वास्तुकला का सुंदर समामेलन है।
आमेर किले और जयगढ़ किले के साथ नाहरगढ़ किला भी जयपुर शहर को कड़ी सुरक्षा प्रदान करता है। असल में किले का नाम पहले सुदर्शनगढ़ था लेकिन बाद में इसे नाहरगढ़ किले के नाम से जाना जाने लगाए जिसका मतलब शेर का निवास स्थान होता है। प्रसिद्ध प्रथाओ के अनुसार नाहर नाम नाहर सिंह भोमिया से लिया गया है जिन्होंने किले के लिये जगह उपलब्ध करवाई और निर्माण करवाया। नाहर की याद में किले के अंदर एक मंदिर का निर्माण भी किया गया है जो उन्ही के नाम से जाना जाता है। नाहरगढ़ किला पहले आमेर की राजधानी हुआ करता था। इस किले पर कभी किसी ने आक्रमण नही किया था लेकिन फिर भी यहां कई इतिहासिक घटनाये हुई है। जिसमे मुख्य रूप से 18 वी शताब्दी में मराठाओ की जयपुर के साथ हुई लढाई भी शामिल है। 1847 के भारत विद्रोह के समय इस क्षेत्र के युरोपियन जिसमे ब्रिटिशो की पत्नियां भी शामिल थी सभी को जयपुर के राजा सवाई राम सिंह ने उनकी सुरक्षा के लिये उन्हें नाहरगढ़ किले में भेज दिया था।
सवाई माधो सिंह द्वारा बनवाया गया माधवेंद्र भवन जयपुर की रानियों को बहुत शूट करता है और मुख्य महल जयपुर के राजा को ही शूट करता है। महल के कमरों को गलियारों से जोड़ा गया है और महल में कुछ रोचक और कोमल भित्तिचित्र भी बने हुए है। नाहरगढ़ किला महाराजाओ का निवास स्थान भी हुआ करता था। अप्रैल 1944 तक जयपुर सरकार इसका उपयोग कार्यालयीन कामो के लिये करती थी।
नाहरगढ किले तक पहुंचने के लिए तीन रास्ते है। पहला रास्ता पुरानी बस्ती होकर है। पुराने समय में जयपुर शहर से इस किले तक आने—जाने के लिए इस रास्ते का उपयोग काफी होता था, इसलिए यह नाहरगढ़ रोड के नाम से फेमस हो गया। इस रास्ते से पैदल या दुपहिया वाहन से पहुंचा जा सकता है लेकिन, पहाड़ी रास्ता घुमावदार और खराब होने के कारण जोखिम भरा रहता है। दूसरा रास्ता आमेर रोड पर कनक घाटी से है। वर्तमान में इस रास्ते का ही उपयोग आवाजाही के लिए होता है। छोटे—बड़े वाहनों की आवाजाही यहां से होती है। आमेर रोड से नाहरगढ किले की दूरी करीब नौ किलोमीटर है। घुमावदार रास्ता होने से यहां कई बार दुर्घटनाएं भी हो चुकी है इसलिए वाहन चलाते समय यहां सावधानी बरतना बहुत जरूरी है। यहां कई घुमाव बेहद खतरनाक है। जहां आए दिन दुर्घटनाएं होती रहती है। तीसरा रास्ता आमेर से है। लेकिन, इस रास्ते से पैदल ही आ-जा सकते है। पुराने समय में यहां आमेर के लोग इसी रास्ते से आते-जाते थे। यहां वाइल्ड लाइफ है इसलिए यह रास्ता काफी खतरनाक है। इसका उपयोग बहुत ही कम होता है। इस रास्ते का उपयोग क्षेत्र के जानकार के साथ ही करना ठीक है।
हिंदी फिल्म रंग दे बसंती और शुद्ध देसी रोमांस और बंगाली फिल्म सोनार केल्ला के कुछ दृश्यों को नाहरगढ़ किले में ही शूट किया गया है। अाज के समय में यह किला बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक फेमस हो चुका है। कुछ हॉलीवुड फिल्मों के कुछ दृश्य भी नाहरगढ़ किले में ही दर्शाएं गये है।
नाहरगढ़ किला जयपुर के आर्किटेक्चरल आश्चर्यो में से एक है। पिंक सिटी जयपुर में बना यह किला निश्चित ही आपके लिये रमणीय और मनमोहक होगा। आप ये सब कुछ तो जानते ही होंगे लेकिन क्या आप नीचे दी गयी इन रोचक बातो को जानते हो..?
झलाना प्रकृति पार्क, नाहरगढ़ जैविक उद्यान के रूप में भी जाना जाता है। यहां कई प्रकार की वनस्पतियों और जीवों को देखा जा सकता है। यह पार्क कुल 7.2 वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैला हुआ है जो नाहरगढ़ किले के पास में ही स्थित है। इस पार्क में काफी बड़ी संख्या में क्वार्टजाइट चट्टान और सैंडस्टोन पाएं जाते है।
पर्यटक यहां आकर बाघ, सरीसृप के विभिन्न प्रकार, बंदर और कई अन्य जानवर भी देख सकते हैं। यहां भारी संख्या में आने वाले प्रवासी पक्षियों को भी देखा जा सकता है। इस सुंदर पार्क के भ्रमण के लिए पर्यटकों को जंगल सफारी की सवारी की सलाह दी जाती है।
नाहरगढ़ के किले तक पहुंचने के लिए अाप सिटी बस, आॅटो, कैब या अपनी निजी वाहन का प्रयोग भी कर सकते हैं। इन सभी वाहनों के माध्यम से अाप नाहरगढ़ के किले तक पहुंच सकते है।
नाहरगढ़ का किला जयपुर शहर के एयरपोर्ट से 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। एयरपोर्ट से नाहरगढ़ के किले तक आने मे लगभग 45 मिनट का समय लगता है। एयरपोर्ट से यहा तक आने के लिए कैब, टेक्सी, आॅटो आसानी से उपलब्ध हो जाते है।
नाहरगढ़ का किला सिंधी कैंप बस स्टॉप से लगभग 09 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। नाहरगढ़ घूमने आने वालों को यहां से किले तक जाने के लिए आॅटो, कैब आसानी से मिल जाते है। यहां से नाहरगढ़ के किले तक पहुंचने में लगभग 30 मिनट का समय लगता है।
रेलवे स्टेशन से नाहरगढ़ का किला 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। यहां से नाहरगढ़ तक पहुचने में लगभग 50 मिनट का समय लगता है। यहां से भी नाहरगढ़ के किले तक पहुंचने के लिए आॅटो, कैब आदि आसानी से मिल जाते है।
नाहरगढ़ का किला देखने के लिए पर्यटन विभाग ने एक टिकट निर्धारित किया है जो कि भारतीय नागरिको और विदेशियों के लिए अलग-अलग चार्ज लेता है। इंडियन पर्यटकों के लिए: वयस्क - 50 रुपए, विधार्थी - 20 रुपए लिए जाते है। सात वर्ष से कम आयु के बच्चो का प्रवेश निशुल्क रखा गया है। वहीं विदेशी पर्यटकों को नाहरगढ़ का किला देखने के लिए: वयस्क - 300 रुपए और विधार्थी - 150 रुपए खर्च करने पड़ते है।
नाहरगढ़ के किले में प्रात 10 से शाम 5 बजे तक पर्यटक घूम सकते हैं। नाहरगढ़ के किले में घूमने के लिए सर्दियों का समय सबसे अनुकूल रहता है अौर अधिकतर सर्दियों के समय में पर्यटकों की भारी संख्या नाहरगढ़ के किले में दिखाई देती है।
बाइक या कार : 20-30 रुपए प्रति वाहन