आज का युग फैशनपरस्त और बॉलीवुड के सितारे है वो पुराने जमाने के राजकुमार और राजकुमारियो का किरदार निभाते है । उन सितारों की खूबसूरती उनके मेकप जैसे लाइनर या लिपस्टिक पर निर्भर करती है। लेकिन प्राकर्तिक खूबसूरती अलग होती है । जिसको न मेकप की जरूरत पड़ती है ना लिपस्टिक की और ना लाइनर की ऐसा ही एक नाम है जयपुर की महारानी गायत्री देवी जो बहुत ही ज्यादा सूंदर थी उनको किसी मेकप की जरूरत नही थी । महारानी गायत्री देवी का नाम दुनिया की 10 सबसे खूबसूरत महिलाओ में से एक था । इसके आलावा भी महारानी गायत्री देवी की सुंदरता की तारीफ क्लार्क गेबल और सेसिल बैटन इन पत्रिकाओ में भी प्रशंसा की गई है ।
यह राजकुमारी 23 मई को कूच बिहार के एक कोच राजबोगशी हिन्दू परिवार में पैदा हुई थी । उनके पिता 1919 में पश्चिम बंगाल के कूच बिहार के महाराजा जितेंद्र नारायण थे और उनकी माँ ऑफ बड़ौदा की मराठा राजकुमारी इंदिरा राजे थी ।
उन्होंने शाही जीवन जिया है बहुत सारे कर्मचारी उनके यहां काम करते थे । वह लंदन में गलेण्डोर प्रीपरेटरी स्कूल, विश्व भारती विश्वविद्यालय में और स्विट्जरलैंड में लुसाने में अध्यन किया है । वह अपनी माँ और भाई बहनो के साथ छुटियो में लंदन में सचिवीय कोशल का अध्यन करने के लिए जाते थे ।
एक राजकुमारी होने के बावजूद गायत्री देवी कभी भी राजा और प्रजा के बीच कोई भेद नही था । न ही वो पुरुष और महिलाओं के बीच कोई सामाजिक विभाजन नही करना चाहती थी । वह एक टॉम बॉय थी ।वह अपने सेवको की पूरी बाते सुनती थी । वह उनकी मजदूरी का पूरा ध्यान रखती थी । गायत्री देवी ने महावत के साथ समय बिताया उनके गीतों को सीखा और हाथियों की कहानियो का आनंद लिया । इसके आलावा वह एक उत्क्रष्ट घुड़ सवार थी और एक बेहद सक्षम पोलो खिलाडी थी । उनके शाट्स बहुत अच्छे थे । और वो शिकार का भी आनंद लिया करती थी ।
गायत्री देवी की मुलाकात जयपुर के महाराज से कोलकता में हुई थी जब वः सिर्फ 12 साल के थे और कोलकता आये थे जय अपने परिवार के साथ वुडलैंड कोलकता अपने परिवार के साथ आये थे तब उनकी मुलाकात महारानी गायत्री देवी से हुई थी । गायत्री देवी ने पोलो छड़ी जय के हाथ में दे दी और उन्हें अपने दूल्हे के रूप में पाने की कामना करने लगी ।
महारानी गायत्री देवी ने 1940 में महाराज सवाई मान सिंह द्वितीय से शादी कर ली और उनकी तीसरी पत्नी बन गई । उनको एक बेंटले और एक हिल स्टेशन पर घर शादी में उपहार के रूप में दिया गया था । वह कारों की बहुत शौकीन थी उनका खुद का रोल्स रोयसेस और एक विमान था । उन्होंने भारत की पहली मर्सिडीज बेंज W126, और 500 एसईएल को खरीद था ।
जयपुर के महाराज की तीसरी पत्नी गायत्री देवी जिनको और की तरह परदे में रहना चाहिए था जो दुनिया से बेखबर रहे और हमेशा घुघट में रहे । लेकिन वह पुरुष और महिलाओ के बीच सामाजिक विभाजन में विश्वास नही रखती थी और वो पुरुषो के साथ कदम मिला कर चलने में विश्वास रखती थी । गायत्री देवी महाराज के साथ ही रहती थी उनकी कम्पनी भी सम्भालती थी और शिकार के दौरान भी महाराज के साथ ही जाती थी । उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा पोलो था । जहां पर भी पोलो का मैच होता था वो वहां खेलने जाया करती थी । उन्होंने भारत में स्प्रिंग्स में अपने सर्दियों के दिन बिताये थे जबकि गर्मियां अक्सर वो विंडसर या सरे में बिताया करती थी । वह बाजार में खरीदारी करने के लिए अपने निजी विमान से दिल्ली आती थी ।
गायत्री देवी ने जयपुर में महारानी गायत्री गर्ल्स पब्लिक स्कुल 1943 में स्थापित किया गया था । यह स्कुल जयपुर में एमजीडी के नाम से जाना जाता है । यह स्कुल लड़कियों का है । महारानी ने यह आशा की कि इस स्कुल में लड़कियों को अच्छी से अच्छी शिक्षा मिले और वो अपने जीवन में आगे बढ़ सके ।
उन्होंने नील रंग के मिटटी के बर्तनों को बनाने की कला को बढ़ावा दिया है ।
उनके पति ने जयपुर को भारत का संघ बनाने के लिए सहमति जताई और कागजो पर हस्ताक्षर किये । उन्होंने अपने बेटे भवानी सिंह को सन 1970 में सिहासन पर बैठाया था । इसके बाद जयपुर की महारानी को जयपुर की राज माता के रूप में जाना जाने लगा ।
जब 1947 में भारत आजाद हुआ था और एक केंद्रीकृत, समाजवादी लोकतंत्र की स्थापना हुई थी रियासतों का उन्मूलन किया गया था तब भी लोग महारानी गायत्री देवी को उतना ही मानते थे और पूजते थे । उन्होंने हमेशा यह महसूस किया कि जो अंतरंग समझ होती है राजा और प्रजा के बीच वो अब भारत से लापता होती जा रही है ।
1960 में इसका विरोध करने के लिए वो जवाहर लाल नेहरू की वामपंथी स्वतन्त्रता पार्टी में शामिल हो गई । उन्होंने महाराज जय सिंह का समर्थन किया था । फिर 1962 में उन्होंने संसद के चुनाव में भाग लिया और कुल वोट की सख्या थी 246516 जिसमे से उन्होंने 192909 वोट से सबसे बड़ी जीत हासिल करली और उन्होंने लोकसभा में राजस्थान विधानसभा की सीट जीत ली थी । इस बात के लिए गिनीज बुक ऑफ़ रिकॉड्स में उनका नाम आया था ।
महारानी गायत्री देवी के चहरे पर एक प्राकृतिक सुंदरता थी । महारानी गायत्री देवी पिले रंग की साड़ी और मोती का सेट पहनकर अति सूंदर लगती थी ।
उनके रहन सहन का तरीका और उनका स्वभाव बहुत ही अच्छा था । उनकी दादी ने सिखाया था कि अम्ब्रोयडी गुलाबी साड़ी के बजाय हरी रंग की साड़ी में ज्यादा अच्छी लगेगी । और उनकी माँ ने उन्हें कॉकटेल पार्टी में हीरे-बूंद कान की बाली पहनने से मना कर दिया था । गायत्री देवी सौन्दर्य शैली का प्रतिक थी । वो ज्यादातर मोती के गहने पहनती थी हल्की नाजुक रेशमी चप्पल और हल्के रंग की शिफॉन की साड़िया पहनती थी । वह दिल पतलून पहनती थी तो भी उतनी ही शानदार लगती थी । वह एक सच्ची राजकुमारी थी गायत्री देवी को शास्त्रीय सुंदरता की मूर्ति माना गया है ।
महारानी गायत्री देवी लकवाग्रस्त आन्त्रावरोध और फेफड़ों के संक्रमण से पीड़ित थी। 29 जुलाई 2009 में उनका निधन हो गया था । जब वो 90 साल की थी ।